Shivyogpath.com The Visionary & Founder of Maa Aadhayeshakti Holistic Health & Care Foundation is Shivyogi Dr. Anupnath This web page Describe how the Indian culture & integrated system of Medicine can promote Holistic Health...
गायत्री मंत्र एवं उसका अर्थ
ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
अर्थः उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मर्ग में प्रेरित करे।
गायत्री मंत्र एक फिलॉसफी है। इसे हम जीवन जीने काी कला कह सकते हैं। वह सोचने का एक तरीका है, जीवनयापन करने की एक पद्धति है, समाज के गठन का तरीका है, विश्व की शंति कीा मूल मंत्र है। अगर हम इसे अपनाकर चलेंगे, तो हम अच्छी दुनियाँ की कल्पना कर सकते हैं। अच्छी दुनियाँ हमें फिर देखने को मिल सकती है, जैसी कि प्राचीनकाल में देखने को मिलती थी। गायत्री एख दिव्य ज्ञान है इसे देवमाता कहते हैं। इसकी उपासना से मनुषअय देवता बन जाता हैं। इसे विश्वमाता भी कहते हैं। गायत्री की फिलॉसफी सबको जाननी चाहिए। अगर इसे हम समझ गए तथा उस रास्ते पर हम चलने का प्रयास कर सके, तो हमारा जीवन धन्य हो सकता है।
गायत्री के
साहस – हिम्मत – सच्चाई और ईश्वर भक्ति
किसी भी व्यक्ति को कैसी भी बीमारी, परेशानी और दुखों से बाहर निकाल सकती है। तभी तो किसी ने सही कहा है :–
हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम
भानू श्री नाथ
ऋणमोचन मंगल स्तोत्र
महाऋषि भार्गवकृत
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1॥
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3॥
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥4॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥5॥
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥6॥
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥7॥
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥ 8 ||
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥9॥
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥10॥
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥11॥
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥12॥
|| ऋणमोचन मङ्गलस्तोत्रम् सत्य सन्तु मनसा कामा ||
होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
भगवान के दस अवतारों से सदैव मानव जाति की
रक्षा हुई है।
वह अवतार हमें धर्म के दश लक्षणों के पालन करने
कि प्रेरणा देते है।
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।
अर्थ – धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना
अपकार करने वाले का भी उपकार करना ),
दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ),
अस्तेय
(चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ),
इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण
में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या
(यथार्थ ज्ञान लेना ).
अतः आप सभी को होली के इस पावन पर्व पर धर्म के
इन दस व्रतों को अपने मे
भगवान विष्णु के रूप मे धारण करने का संकल्प
करना चाहिए।
आज का पर्व लक्ष्मी जंयती के रूप मे मनाया जाता
है।
और चंद्रमा का भी आज के दिन ही जन्म हुआ था।
ऐसा हमें गुरूओं से ज्ञान मिला है।
भगवान विष्णु के वराह अवतार को भी आज हमें याद
करना चाहिए।
जिसने धरणी की रक्षा करी थी।
ऊँ धरणी धराय नमः।
डॉ. अनूपनाथ (शिव योगी)
आज के समय में बच्चों में:
एंग्जायटी (चिंता)
एग्रेसन (आक्रोश)
इनसिक्योरिटी (असुरक्षा)
यह तीनों समस्याएं बहुत आम होती जा रही हैं। आपने सही कहा कि फिजिकल इश्यूज़ तो हम जांच लेते हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को पहचानने और उस पर कार्य करने की आवश्यकता है।
2. नशा और स्टिमुलेंट्स की लत:
उदाहरण — “स्टिंग नही पीता तो काम नहीं कर पाता”
— आधुनिक बच्चों में कैफीन और अन्य स्टिमुलेंट्स की लत को उजागर करता है।
यह वाकई एक चिंता का विषय है कि बच्चे अपने प्रदर्शन को बनाए रखने के लिए मानसिक और शारीरिक शॉर्टकट ढूंढ रहे हैं।
“चिकित्सकों का काम सिर्फ इलाज करना नहीं है, समाज को दिशा देना भी है।”
डॉक्टर को खुद फिजिकली, मेंटली, इमोशनली और स्पिरिचुअली फिट रहना चाहिए — क्योंकि वह समाज का पथ-प्रदर्शक है।
योग के द्वारा षट्चक्रो का जागरण, पंचकोषिये साधना समन्वित योग चिकित्सा के माध्यम से प्रणायम / “ब्रीथिंग टेक्निक्स” के माध्यम से, जो कि शुद्ध वैदिक और वैज्ञानिक ज्ञान का समन्वय है अर्थात योग और ध्यान के माध्यम से हम:
तनाव को कम कर सकते हैं
निर्णय क्षमता (विज्ञानमय कोष) को बढ़ा सकते हैं
और अंततः आनंद (liberation) की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं।
“वसुधैव कुटुम्बकम”, “देशभक्ति”, “सांस्कृतिक मूल्यों” का जो हमने समन्वय किया है — यह प्रचार एवं प्रक्षिशण कार्य जो हम चाहते है जिसके के द्वारा समाज समग्र स्वास्थ्य कि स्थति को प्राप्त कर सकता है।
जब ब्राह्मण और वेद-पाठी उनके पास आए और पूछा कि वे वेदों को क्यों नहीं मानते, तो बुद्ध ने कहा—
“जब कोई समुद्र में डूब रहा हो, और एक अनुभवी तैराक उसे बचा सकता है, तो उसे किताब पढ़ाने की ज़रूरत नहीं होती।”
इसका अर्थ ये है कि यदि किसी को अनुभव हो गया है, तो उसे केवल शास्त्र पढ़कर सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं। बुद्ध के लिए ज्ञान का मतलब था – अनुभव, न कि केवल पठन-पाठन।
बौद्ध धर्म का मूल उद्देश्य है – बोध यानी जागरूकता। बौद्ध बनने का अर्थ है—
जानकारी लेकर उसे जीवन में उतारना, न कि केवल अंधानुकरण करना।
आपने बिल्कुल सही कहा कि यदि कोई बड़े-बड़े मंत्र तो पढ़ता है, लेकिन अपने अंदर झांककर नहीं देखता, तो उसका कोई लाभ नहीं।
भगवान बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताए, जो उनके पूरे दर्शन की रीढ़ हैं:
दुख है – जीवन में दुख का अस्तित्व है।
दुख का कारण है – यह तृष्णा (इच्छा) है।
दुख का निवारण संभव है – तृष्णा का अंत करके।
उस निवारण का मार्ग है – अष्टांगिक मार्ग (Right View, Right Intent, etc.)
निर्वाण का अर्थ है – सभी दुखों से मुक्ति। बुद्ध ने दिखाया कि यह कोई स्वर्ग या बाहरी लोक नहीं, बल्कि आंतरिक शांति की स्थिति है, जहाँ कोई तृष्णा नहीं, कोई क्लेश नहीं।
भगवान बुद्ध ने न तो किसी शास्त्र का खंडन किया, न अंधश्रद्धा का समर्थन। उनका कहना था – जो सत्य है, उसे जानो, अनुभव करो और अपनाओ। यही उनका अवतार रूप था – एक प्रबुद्ध मानव।
– शिवयोगी – डॉ. अनूप नाथ
अध्यात्म कोई तर्क-वितर्क या वैज्ञानिक प्रयोग का विषय नहीं है। यह अनुभूति का मार्ग है, जिसे केवल स्वयं के भीतर उतरकर और अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन में ही जाना जा सकता है।
2. स्वयं पर अनुशासन:
जब हम अपने ऊपर संयम रखते हैं, अपनी इच्छाओं और वासनाओं पर नियंत्रण करते हैं, तो हम “स्व” के अधिक निकट पहुँचते हैं। यही आत्म केंद्रिकता का आरंभ है — यहीं से अध्यात्म शुरू होता है।
3. संवेदनशीलता:
संवेदनशीलता अध्यात्म की पहली सीढ़ी है। जब मनुष्य अपने भीतर झाँकता है, तो वह दूसरों के दुःख, पीड़ा और भावनाओं को भी गहराई से समझने लगता है।
4. ऋषि परंपरा और ग्रंथ:
हमारे वेद, उपनिषद, पुराण आदि न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि जीवन को जीने का एक गहरा ‘प्रोटोकॉल’ भी प्रस्तुत करते हैं। वे हमारे चेतना के स्तर को ऊपर उठाने के साधन हैं।
5. समग्र स्वास्थ्य में भूमिका:
शरीर के पांच कोष —
अनमय कोश (शारीरिक)
प्राणमय कोश (ऊर्जा)
मनोमय कोश (मन)
विज्ञानमय कोश (बुद्धि)
आनंदमय कोश (आनंद)
— ये सब मिलकर हमारी चेतना का निवास स्थान हैं। अध्यात्म इन सभी स्तरों को शुद्ध करता है।
6. मानसिक और भावनात्मक उपचार:
आज अधिकांश बीमारियाँ मन की अवस्था और जीवन के अनुशासन की कमी के कारण हो रही हैं। यदि हम अपने मन, भावना और विचारों को संयमित कर लें — तो यह स्वयं एक गहन चिकित्सा है।
7. बच्चों के लिए नैतिक शिक्षण:
जैसे हम शारीरिक शिक्षा देते हैं, वैसे ही आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षण भी आवश्यक है ताकि भावी पीढ़ी संवेदनशील, विवेकशील और अनुशासित बने।
अध्यात्म कोई अलग विषय नहीं, बल्कि जीवन को पूर्णता से जीने का नाम है। यह मन, बुद्धि, शरीर और आत्मा – चारों को संतुलन में लाने का विज्ञान है। यह मार्ग कठिन हो सकता है लेकिन गुरु की कृपा और सत्संग से इसे सरल बनाया जा सकता है।
यदि हम चिकित्सा में अध्यात्म को सम्मिलित करें, तो न केवल रोग बल्कि रोगी का भी गहन उपचार हो सकता है — बॉडी, माइंड एंड सोल — तीनों स्तरों पर।
– शिवयोगी – डॉ. अनूप नाथ
भगवान बुद्ध का जन्म एक ऐसे युग में हुआ था जब धार्मिक कर्मकांड और वेदों के ज्ञान को ही अंतिम सत्य माना जाता था। बड़े-बड़े ब्राह्मण, वेदपाठी जन अपने ज्ञान पर गर्व करते थे, लेकिन बुद्ध ने एक अलग राह चुनी — अनुभव और आत्मबोध की राह।
जब ब्राह्मणों ने उनसे पूछा कि “आप वेदों को नहीं मानते?”, तो उन्होंने उत्तर दिया कि:
“जब कोई व्यक्ति समुद्र को खुद तैरकर पार कर चुका हो, तो उसे नाव की ज़रूरत नहीं होती।”
इसका मतलब यह था कि अनुभव ही सबसे बड़ा ज्ञान है, और जिसे ज्ञान का अनुभव हो गया, उसे केवल ग्रंथों के पाठ की आवश्यकता नहीं।
बुद्ध का धर्म: अनुभव और व्यवहार
बुद्ध ने कहा कि:
“बौद्ध” होने का अर्थ है — जागरूक और संवेदनशील होना।
चार आर्य सत्य (Four Noble Truths)
बुद्ध ने संसार के दुखों का विश्लेषण किया और कहा:
निर्वाण का अर्थ
बुद्ध के अनुसार निर्वाण वह अवस्था है जहां व्यक्ति सभी दुखों और तृष्णाओं से मुक्त हो जाता है — एक स्थायी शांति की स्थिति।
अंत में
आपका भाव बिल्कुल सही है —
“बुद्ध का धर्म अनुभव पर आधारित है, केवल शाब्दिक ज्ञान पर नहीं।”
आज बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर, उनके उपदेशों को आत्मसात करने का दिन है — कि हम भी जागृत हों, स्वयं को समझें, और दूसरों की पीड़ा को समझते हुए करुणा के साथ जीवन जिएं।
बुद्धं शरणं गच्छामि। – अर्थात ज्ञान,
जागरूकता बौद्धित्व के मार्ग पर मैं चलता हूँ ये संकल्प सदा करना चाहिए।
– शिवयोगी – डॉ. अनूप नाथ
Today, as we bring forth the image of Lord Buddha, I take a moment to remember some of his teachings.
When great scholars and Brahmins, who were well-versed in the Vedas, visited Lord Buddha, they wondered about his path. They thought, “He seems to follow a different tradition… His principles appear to differ from ours… He doesn’t accept the authority of the Vedas.”
So, they came to him and asked, “Why don’t you accept the Vedas? What is the reason behind it?”
To this, Buddha responded through a metaphor:
“If someone is already swimming in the ocean and has the experience, they don’t need to learn how to swim from a book or observe others. Similarly, if someone has directly experienced truth, they don’t need to merely recite scriptures or perform rituals.”
The Meaning of Being ‘Buddha’
The essence of the Buddha’s path is awareness (Bodhi) — knowing the truth through personal experience and applying it practically in life.
It is not about blindly chanting big mantras or performing rituals without self-understanding. Lord Buddha taught that real wisdom comes from within, from awakening — not from blindly following rules or traditions.
To be “Buddha” means to be awakened, to realize and feel the truth within, not just to memorize or recite it.
Buddha’s Core Teaching
He urged people to find the root cause of all suffering in the world. He discovered and taught that:
This is the heart of Buddha’s teaching — that by ending desire, one can attain Nirvana, the state of ultimate peace and freedom.
Final Thought
So, today, on the occasion of Lord Buddha’s remembrance, let us reflect on this:
“Buddhism is not just about chanting scriptures; it’s about awakening, self-awareness, and practical living.”
Let us all take the blessings of the Enlightened One and move forward with mindfulness, compassion, and inner awareness.
Buddham Sharanam Gacchami — I take refuge in the Buddha.
– Shivyogi – Dr. Anupnath
1. क्या किसी में “माता आना”, या “आत्मा का प्रवेश” वास्तविक है?
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से:
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
2. आपका अनुभव: क्या इसका मतलब कुछ था?
आपने एक ऐसे व्यक्ति से मिलने की बात की जो किसी पर्ची को जला कर उसकी “सुगंध” से सारी जानकारी बता देता था, और अंग्रेज़ी में लिखे शब्द पर वो असहाय हो गया।
इसका अर्थ क्या हो सकता है?
या यह भी संभव है:
निष्कर्ष:
लेकिन यदि इस अनुभव के नाम पर कोई व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान हो रहा है, या दूसरों को धोखा दे रहा है, तब उसका साइंटिफिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण जरूरी है।
– शिवयोगी – डॉ. अनूप नाथ
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Age his surprise formerly perceive few stanhill moderate. Of in power match on truth worse voice would.
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Dr Lalita Gupta & Dr Anup Nath Dr Lalita Gupta & Dr Anup Nath, first Inspiration, Astrology and Integreated Medicine for Holistic Health Promotion. Pandit Arun Jetali with promoter Sh JP Nath founder’s Father...
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