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गायत्री मंत्र एवं उसका अर्थ

ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

अर्थः उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मर्ग में प्रेरित करे। 

 

गायत्री मंत्र एक फिलॉसफी है। इसे हम जीवन जीने काी कला कह सकते हैं। वह सोचने का एक तरीका है, जीवनयापन करने की एक पद्धति है, समाज के गठन का तरीका है, विश्व की शंति कीा मूल मंत्र है। अगर हम इसे अपनाकर चलेंगे, तो हम अच्छी दुनियाँ की कल्पना कर सकते हैं। अच्छी दुनियाँ हमें फिर देखने को मिल सकती है, जैसी कि प्राचीनकाल में देखने को मिलती थी। गायत्री एख दिव्य ज्ञान है इसे देवमाता कहते हैं। इसकी उपासना से मनुषअय देवता बन जाता हैं। इसे विश्वमाता भी कहते हैं। गायत्री की फिलॉसफी सबको जाननी चाहिए। अगर इसे हम समझ गए तथा उस रास्ते पर हम चलने का प्रयास कर सके, तो हमारा जीवन धन्य हो सकता है। 

 

गायत्री के 

साहस – हिम्मत – सच्चाई और ईश्वर भक्ति

 

किसी भी व्यक्ति को कैसी भी बीमारी, परेशानी और दुखों से बाहर निकाल सकती है। तभी तो किसी ने सही कहा है :

 

हारिये न हिम्मत  बिसारिये न राम

                                        भानू श्री नाथ

ऋणमोचन मंगल स्तोत्र

महाऋषि भार्गवकृत

 

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1

 

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।

धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2

 

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।

व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3

 

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।

ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥4

 

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥5

 

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।

न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥6

 

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।

त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥7

 

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।

भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥ 8 ||

 

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।

तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥9

 

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥10

 

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।

ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥11

 

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।

महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥12

 

|| ऋणमोचन मङ्गलस्तोत्रम् सत्य सन्तु मनसा कामा ||

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

भगवान के दस अवतारों से सदैव मानव जाति की
रक्षा हुई है।

वह अवतार हमें धर्म के दश लक्षणों के पालन करने
कि प्रेरणा देते है।

धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।

अर्थ धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना
अपकार करने वाले का भी उपकार करना )
,

दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ),
अस्तेय
(चोरी न करना )
, शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ),

इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण
में लगाना )
, धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या
(यथार्थ ज्ञान लेना ).

अतः आप सभी को होली के इस पावन पर्व पर धर्म के
इन दस व्रतों को अपने मे

भगवान विष्णु के रूप मे धारण करने का संकल्प
करना  चाहिए।

आज का पर्व लक्ष्मी जंयती के रूप मे मनाया जाता
है।

और चंद्रमा का भी आज के दिन ही जन्म हुआ था।
ऐसा हमें गुरूओं से ज्ञान मिला है।

भगवान विष्णु के वराह अवतार को भी आज हमें याद
करना चाहिए।

जिसने धरणी की रक्षा करी थी।

ऊँ धरणी धराय नमः।

डॉ. अनूपनाथ (शिव योगी)