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(www.shivyogpath.com) – How Indian culture and integrated systems of medicine promote holistic health in today’s world. Our videos offer scientific, psychological, and spiritual insights, inspired by authentic Indian literature—especially from Geeta Press Gorakhpur, Yugrishi Pandit Shri Ram Sharma Acharya, Guru Mata Bhagwati Devi, and the teachings of Shri J.P. Nath. Dr. Anup Nath, the channel’s founder, is a qualified medical professional with over 35 years of experience in Allopathy, Homeopathy, Naturopathy, and Yogic Sciences. He is an Honorary Consultant in Integrated Medicine, Remedial Astrologer, and Spiritual Guide. Promoting Indian culture and moral values among children. A practical yogi and astrologer since childhood, Dr. Nath is also a social reformer, dedicated to serving the community through free holistic health camps. Guided by the ideal of “वसुधैव कुटुम्बकम” (The whole world is one family), this channel is a journey toward healing awareness and unity. www.shivyogpath.com – (www.shivyogpath.com)

नील सरस्वती स्तोत्र

#नीलसरस्वतीस्तोत्र #माँसरस्वती #विद्याकीदेवी #कालिदासकाकथा #विद्यार्थियोंकेलिएमंत्र #बुद्धिविकास #भारतीयसंस्कृति (www.shivyogpath.com)

Blog – नील सरस्वती स्तोत्र: विद्यार्थी और साधकों के लिए एक चमत्कारी साधना “विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।”

भारतीय संस्कृति में ज्ञान को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं माँ सरस्वती। परंतु जब पढ़ाई में मन न लगे, बार-बार असफलता हाथ लगे, या आत्मविश्वास डगमगाए — तब मात्र पाठ्यपुस्तकें नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है ऐसे समय में नील सरस्वती स्तोत्र एक अद्भुत, रहस्यमय, और अत्यंत शक्तिशाली साधना सिद्ध होता है। नील सरस्वती स्तोत्र क्या है? नील सरस्वती स्तोत्र माँ सरस्वती के रौद्र और गुप्त स्वरूप की आराधना है। यह स्तोत्र न केवल विद्या और बुद्धि का आह्वान करता है, बल्कि शत्रुओं, मानसिक बाधाओं और आत्म-संदेह को दूर कर जीवन में नई दिशा देता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए है: (www.shivyogpath.com)

  • जो पढ़ाई में पिछड़ रहे हों
  • जिनका आत्मबल कमजोर हो
  • जिनकी बुद्धि भ्रमित रहती हो
  • और जो जीवन में उन्नति चाहते हों

एक सच्ची प्रेरणा के रूप में आप सभी महान कवि कालिदास जी की कथा को जानते होंगे कहा जाता है कि एक समय में महाकवि कालिदास भी अज्ञानी और मूर्ख कहे जाते थे। परंतु एक संत ने उन्हें नील सरस्वती स्तोत्र की दीक्षा दी।

इसके नियमित पाठ से उनका जीवन रूपांतरित हो गया — और वे संस्कृत साहित्य के स्तंभ बन गए। (www.shivyogpath.com)

पाठ विधि

समय: ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4–6 बजे)

मुद्रा:

ध्यान मुद्रा में, शांत चित्त से बैठें

प्रक्रिया:

खेचरी मुद्रा (जिह्वा ऊपर) अपनाएं माँ का ध्यान करते हुए स्तोत्र का पाठ करें अंत में ‘योनि मुद्रा’ द्वारा माँ को कृतज्ञता प्रकट करें आवृत्ति: दिन में 3 बार — सुबह, दोपहर और रात्रि

नील सरस्वती स्तोत्र पाठ से लाभ

  • बुद्धि की तीव्रता
  • एकाग्रता में वृद्धि
  • परीक्षा में सफलता
  • शत्रु बाधा और मानसिक क्लेशों से मुक्ति
  • आत्मज्ञान और मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसरता

विशेष तिथियाँ

अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी को यह स्तोत्र विशेष फलदायक होता है स्तोत्र का मासिक पाठ करने वाले व्यक्ति को सिद्धि की प्राप्ति अवश्य होती है इस स्त्रोत मे माँ से प्रार्थना कि गई हैः-

“त्राहि मां शरणागतं,

हे देवी! आप मेरी बुद्धि का अंधकार दूर करें,

और मुझे ज्ञान, विवेक और विजय प्रदान करें।”

निष्कर्ष

माँ नील सरस्वती का यह स्तोत्र केवल मंत्र नहीं, एक जीवन परिवर्तनकारी साधना है यदि आप जीवन में बदलाव चाहते हैं, आत्मबल चाहते हैं, या बच्चों को अध्यात्म और विद्या की ओर प्रेरित करना चाहते हैं — तो यह स्तोत्र अमोघ उपाय है। (www.shivyogpath.com)

इस स्तोत्र की ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग देखने के लिए हमारा YouTube चैनल ज़रूर सब्सक्राइब करें। (www.shivyogpath.com)

#नीलसरस्वतीस्तोत्र #माँसरस्वती #विद्याकीदेवी #कालिदासकाकथा #विद्यार्थियोंकेलिएमंत्र #बुद्धिविकास #भारतीयसंस्कृति

नीलसरस्वतीस्तोत्रम्

घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयंकरि।

भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् ।। 1 ।।

ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्‍धगन्धर्वसेविते।

जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम् ।। 2 ।।

जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।

द्रुतबुद्‍धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम् ।।3।।

सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोSस्तु ते।

सृष्टिरुपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् ।।4।।

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।

मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ।।5।।

वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नमः।

उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम् ।।6।।

बुद्‍धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।

मूढत्वं च हरेद्‍देवि त्राहि मां शरणागतम् ।।7।।

इन्द्रादिविलसद्‍दवन्द्‍ववन्दिते करुणामयि।

तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मैं शरणागतम् ।।8।।

अष्टभ्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन्नरः।

षण्मासैः सिद्‍धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ।।9।।

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।

विद्‍यार्थी लभते विद्‍यां तर्कव्याकरणादिकम् ।।10।।

इदं स्तोत्रं पठेद्‍यस्तु सततं श्रद्धयाSन्वित:।

तस्य शत्रु: क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते ।।11।।

पीडायां वापि संग्रापे जाड्ये दाने तथा भये।

य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशय: ।।12।।

इति प्रणम्य स्तुत्वा च योननमुद्रां प्रदर्शयेत्

।।माँ नीलसरस्वतीस्तोत्रं सत्य सन्तु मनसा कामा ।।

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– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ

सफलता चाहते हो तो चार कदम चलों

सफलता चाहते हो तो चार कदम चलों (www.shivyogpath.com)

(www.shivyogpath.com) – जीवन के चार महत्वपूर्ण पहलुओं — संकल्प, पुरुषार्थ (परिश्रम), पोषण (लगातार अभ्यास) और परिक्रमा (सही दिशा में निरंतरता) — का सुंदर विवेचन है, जो मानव जीवन के लक्ष्य को पाने में बेहद जरूरी हैं। – (www.shivyogpath.com)

हमारे अंदर एक ईश्वर तत्व छुपा हुआ है, जो परमात्मा का अंश है। जैसे कि एक मटर का दाना, वृक्ष या पौधा बन जाता है, वैसे ही हम भी ईश्वर की एक सूक्ष्म इकाई हैं। और यदि हम अपने अंदर उस शक्ति को जागृत कर लें, तो हम असंभव को संभव कर सकते हैं। (www.shivyogpath.com)

ज्ञान की रोशनी ही हमें वास्तविकता का दर्शन कराती है और हमारी बुद्धि को जाग्रत करती है। गुरु हमें सही दिशा दिखाता है, जिससे हमारा मनोबल बढ़ता है और हम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता से बढ़ते हैं।

केवल इच्छा और लक्ष्य के प्रति लालसा होना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उस लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर संकल्प और मेहनत करना जरूरी है। बिना मेहनत और नियमित अभ्यास के कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। (www.shivyogpath.com)

यह विचार कि ‘अतिथि देवो भवः’ और सेवा की भावना हमारे संस्कारों का मूल है, समाज में सामंजस्य और सकारात्मक ऊर्जा फैलाने में सहायक है।

– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ

मंगल स्त्रोत ऋणमोचन, महाऋषि भार्गवकृत | Dr. Anupnath|

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साहस – हिम्मत – सच्चाई और ईश्वर भक्ति

किसी भी व्यक्ति को कैसी भी बीमारी,

परेशानी और दुखों से बाहर निकाल सकती है।

तभी तो किसी ने सही कहा है :-

हारिये न हिम्मत  बिसारिये न राम

– भानू श्री नाथ

ऋणमोचन मंगल स्तोत्र

महाऋषि भार्गवकृत

 

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।

धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।

व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।

ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥4

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥5

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।

न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥6

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।

त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥7

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।

भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥ 8 ||

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।

तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥9

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥10

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।

ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥11

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।

महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥12

|| ऋणमोचन मङ्गलस्तोत्रम् सत्य सन्तु मनसा कामा ||

 

 

– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ

भगवान वराह अवतार की सची कहानी

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भगवान के दस अवतारों से सदैव मानव जाति की रक्षा हुई है।

वह अवतार हमें धर्म के दश लक्षणों के पालन करने कि प्रेरणा देते है।

धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।

अर्थ – धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ),

दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय
(चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ),

इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण
में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ).

अतः आप सभी को होली के इस पावन पर्व पर धर्म के इन दस व्रतों को अपने मे भगवान विष्णु के रूप मे धारण करने का संकल्प करना  चाहिए।

आज का पर्व लक्ष्मी जंयती के रूप मे मनाया जाता है। और चंद्रमा का भी आज के दिन ही जन्म हुआ था। ऐसा हमें गुरूओं से ज्ञान मिला है।

भगवान विष्णु के वराह अवतार को भी आज हमें याद
करना चाहिए। जिसने धरणी की रक्षा करी थी।

ऊँ धरणी धराय नमः।

डॉ. अनूपनाथ (शिव योगी) (www.shivyogpath.com)

How Mental Health of Society Can Be Improved?

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(www.shivyogpath.com)- 1. मानसिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता:

आज के समय में बच्चों में:

  • एंग्जायटी (चिंता)

  • एग्रेसन (आक्रोश)

  • इनसिक्योरिटी (असुरक्षा)
    यह तीनों समस्याएं बहुत आम होती जा रही हैं। आपने सही कहा कि फिजिकल इश्यूज़ तो हम जांच लेते हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को पहचानने और उस पर कार्य करने की आवश्यकता है। (www.shivyogpath.com)

2. नशा और स्टिमुलेंट्स की लत:

उदाहरण — “स्टिंग नही पीता तो काम नहीं कर पाता” 

आधुनिक बच्चों में कैफीन और अन्य स्टिमुलेंट्स की लत को उजागर करता है।
यह वाकई एक चिंता का विषय है कि बच्चे अपने प्रदर्शन को बनाए रखने के लिए मानसिक और शारीरिक शॉर्टकट ढूंढ रहे हैं। (www.shivyogpath.com)

3. चिकित्सक का आदर्श बनना:

“चिकित्सकों का काम सिर्फ इलाज करना नहीं है, समाज को दिशा देना भी है।”

डॉक्टर को खुद फिजिकली, मेंटली, इमोशनली और स्पिरिचुअली फिट रहना चाहिए — क्योंकि वह समाज का पथ-प्रदर्शक है। (www.shivyogpath.com)

 

4. योग, ब्रीदिंग और आंतरिक शांति की साधना:

 योग के द्वारा षट्चक्रो का जागरण, पंचकोषिये साधना समन्वित योग चिकित्सा के माध्यम से प्रणायम / “ब्रीथिंग टेक्निक्स” के माध्यम से, जो कि शुद्ध वैदिक और वैज्ञानिक ज्ञान का समन्वय है अर्थात योग और ध्यान के माध्यम से हम:

  • तनाव को कम कर सकते हैं

  • निर्णय क्षमता (विज्ञानमय कोष) को बढ़ा सकते हैं

  • और अंततः आनंद (liberation) की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं।

5. राष्ट्र, समाज और आत्मिक चेतना:

“वसुधैव कुटुम्बकम”, “देशभक्ति”, “सांस्कृतिक मूल्यों” का जो हमने समन्वय किया है — यह प्रचार एवं प्रक्षिशण कार्य जो हम चाहते है जिसके के द्वारा समाज समग्र स्वास्थ्य कि स्थति को प्राप्त कर सकता है।  (www.shivyogpath.com)

– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ

भगवान बुद्ध का स्वरूप और दर्शन

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Blog – भगवान बुद्ध का उद्देश्य केवल एक धार्मिक परंपरा बनाना नहीं था, बल्कि बोध (ज्ञान और अनुभव) के माध्यम से जीवन की सच्चाइयों को समझना और दूसरों को भी उसी पथ पर प्रेरित करना था। उनके अनुसार: (www.shivyogpath.com)

  1. अनुभव ही सच्चा ज्ञान है:

जब ब्राह्मण और वेद-पाठी उनके पास आए और पूछा कि वे वेदों को क्यों नहीं मानते, तो बुद्ध ने कहा—

“जब कोई समुद्र में डूब रहा हो, और एक अनुभवी तैराक उसे बचा सकता है, तो उसे किताब पढ़ाने की ज़रूरत नहीं होती।”

इसका अर्थ ये है कि यदि किसी को अनुभव हो गया है, तो उसे केवल शास्त्र पढ़कर सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं। बुद्ध के लिए ज्ञान का मतलब था – अनुभव, न कि केवल पठन-पाठन। (www.shivyogpath.com)

  1. बुद्ध बनने का अर्थ:

बौद्ध धर्म का मूल उद्देश्य है – बोध यानी जागरूकता। बौद्ध बनने का अर्थ है—

जानकारी लेकर उसे जीवन में उतारना, न कि केवल अंधानुकरण करना।

आपने बिल्कुल सही कहा कि यदि कोई बड़े-बड़े मंत्र तो पढ़ता है, लेकिन अपने अंदर झांककर नहीं देखता, तो उसका कोई लाभ नहीं। (www.shivyogpath.com)

  1. दुख और उसका समाधान:

भगवान बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताए, जो उनके पूरे दर्शन की रीढ़ हैं:

दुख है – जीवन में दुख का अस्तित्व है।

दुख का कारण है – यह तृष्णा (इच्छा) है।

दुख का निवारण संभव है – तृष्णा का अंत करके।

उस निवारण का मार्ग है – अष्टांगिक मार्ग (Right View, Right Intent, etc.) (www.shivyogpath.com)

  1. निर्वाण की ओर यात्रा:

निर्वाण का अर्थ है – सभी दुखों से मुक्ति। बुद्ध ने दिखाया कि यह कोई स्वर्ग या बाहरी लोक नहीं, बल्कि आंतरिक शांति की स्थिति है, जहाँ कोई तृष्णा नहीं, कोई क्लेश नहीं।

निष्कर्ष:

भगवान बुद्ध ने न तो किसी शास्त्र का खंडन किया, न अंधश्रद्धा का समर्थन। उनका कहना था – जो सत्य है, उसे जानो, अनुभव करो और अपनाओ। यही उनका अवतार रूप था – एक प्रबुद्ध मानव।

– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ

क्या किसी में “माता आना”, या “आत्मा का प्रवेश” वास्तविक है?

(www.shivyogpath.com)

(www.shivyogpath.com) – 1. क्या किसी में “माता आना”, या “आत्मा का प्रवेश” वास्तविक है?

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से:

  • भारत और कई अन्य संस्कृतियों में यह मान्यता है कि कुछ विशेष समयों पर, विशेष परिस्थितियों में, देवी-देवता या आत्माएं किसी माध्यम (medium) के शरीर में प्रवेश कर सकती हैं।
  • इसे “देव प्रवेश”, “माता आना”, “संवाद के माध्यम बनना” आदि कहा जाता है।
  • यह विश्वास कई मंदिरों, तांत्रिक साधनाओं और ग्रामीण धार्मिक परंपराओं में आम है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से:

  • कई बार यह घटना trance state, dissociation या altered states of consciousness की स्थिति हो सकती है।
  • व्यक्ति का अवचेतन मन (subconscious mind) सामाजिक और सांस्कृतिक conditioning के आधार पर व्यवहार करने लगता है। इससे उसे या दूसरों को लगता है कि उसमें कोई शक्ति प्रवेश कर गई है।
  • इसे possessed state भी कहा जाता है, जो कई बार मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति भी हो सकती है, जैसे dissociative identity disorder (DID) या hysteria (conversion disorder)। (www.shivyogpath.com)

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:

  • अब तक कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि आत्माएं वास्तव में किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती हैं।
  • हालांकि, यह स्वीकार किया जाता है कि व्यक्ति की मानसिक स्थिति, विश्वास प्रणाली, और सामाजिक वातावरण इन अनुभवों को “वास्तविक” बना सकते हैं। (www.shivyogpath.com)

2. आपका अनुभव: क्या इसका मतलब कुछ था?

आपने एक ऐसे व्यक्ति से मिलने की बात की जो किसी पर्ची को जला कर उसकी “सुगंध” से सारी जानकारी बता देता था, और अंग्रेज़ी में लिखे शब्द पर वो असहाय हो गया।

इसका अर्थ क्या हो सकता है?

  • संभव है कि वह व्यक्ति कुछ ट्रिक्स (जैसे cold reading, suggestion, या psychological techniques) का इस्तेमाल करता हो जो हिंदी या स्थानीय भाषा में सहज होती हों।
  • जब आपने अंग्रेजी का प्रयोग किया, तो वो तकनीक या उसकी “स्क्रिप्ट” काम नहीं कर पाई इसलिए वह हतप्रभ हो गया और उसने इसे “शक्ति का अंत” मान लिया।

या यह भी संभव है:

  • अगर वह वास्तव में किसी ऐसी शक्ति से जुड़ा हुआ था, जो किसी सीमित माध्यम या भाषा तक ही सीमित थी, तो यह भी एक संकेत हो सकता है कि वह शक्ति मानव सीमाओं से परे नहीं थी।

निष्कर्ष:

  • यह विषय विज्ञान, मनोविज्ञान और अध्यात्म तीनों के संगम पर आता है।
  • यह न पूरी तरह मिथक है, न पूरी तरह सत्य, बल्कि अनुभव आधारित, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से निर्मित एक मिश्रित सत्य है।
  • यदि किसी व्यक्ति को इससे सहायता मिलती है, और वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहा, तो उसे उस विश्वास में रहने दिया जा सकता है।

लेकिन यदि इस अनुभव के नाम पर कोई व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान हो रहा है, या दूसरों को धोखा दे रहा है, तब उसका साइंटिफिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण जरूरी है। (www.shivyogpath.com)

– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ

श्राद्ध क्यों करें? श्राद्ध का वास्तविक महत्व

श्राद्ध क्यों करें? श्राद्ध का वास्तविक महत्व (www.shivyogpath.com)
  1. भावनात्मक परिष्कार (Emotional Culturing):  – (www.shivyogpath.com)

श्राद्ध एक धार्मिक कर्तव्य भर नहीं है, यह हमारी इमोशनल कल्चरिंग है। जब हम अपने पितरों को याद करते हैं, उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं, तो यह क्रिया हमारे हृदय को संवेदनशील, कृतज्ञ और संस्कारित बनाती है।

  1. संस्कारों की पीढ़ीगत स्थिरता:

जब हम अपनी परंपराओं को निभाते हैं, तो हमारे बच्चे और युवा पीढ़ी उससे सीखते हैं। इससे भारतीय संस्कृति की नींव मजबूत होती है और वंशानुगत रूप से संस्कारों का प्रवाह बना रहता है।

  1. समर्पण और आभार का अभ्यास:

‘श्राद्ध’ शब्द ही ‘श्रद्धा’ से निकला है, यानी किसी के प्रति सम्मान और कृतज्ञता। यह वह समय है जब हम उन पूर्वजों के प्रति धन्यवाद प्रकट करते हैं जिनकी वजह से हम हैं।

  1. तर्पण — साधनों से नहीं, भावनाओं से:

हर किसी के पास धन नहीं होता। लेकिन श्रद्धा और भावनाएं सबके पास होती हैं।

शास्त्र कहते हैं:

“भावग्रहणं न तु द्रव्यग्रहणम्” — देवता और पितर भाव से प्रसन्न होते हैं, सामग्री से नहीं। (www.shivyogpath.com)

  1. सरल तर्पण विधि:

अगर कोई साधन नहीं हैं, तो भी

तिल, कुश और शुद्ध जल से

“ॐ पितृदेव्यै स्वधा नमः” कहते हुए

तीन अंजलि जल अर्पण कर

आप पितरों को तृप्त कर सकते हैं।

  1. अनुभव की शक्ति:

ध्यान और भाव से श्राद्ध किया जाए तो कई लोग अनुभव करते हैं कि उनके पितृ उनके समीप आते हैं। उनकी स्मृति, उनका आशीर्वाद, जीवन में अदृश्य रूप से कार्य करता है। यह अनुभूत सत्य है — केवल मान्यता नहीं। (www.shivyogpath.com)

  1. पितृलोक और देवयान:

हिंदू दर्शन में पितृलोक एक विशेष स्थान है, जहां आत्माएं विराजती हैं। श्राद्ध एक प्रकार की ईश्वरीय संप्रेषण प्रक्रिया है — पहले पितरों तक और फिर देवताओं तक भाव का संचार।

निष्कर्ष:

श्राद्ध करना हमारे जीवन का एक आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक अभ्यास है। यह न केवल पितरों को तृप्त करता है, बल्कि हमें भी भीतर से परिष्कृत करता है। (www.shivyogpath.com)

धन हो या न हो, श्रद्धा सबसे बड़ा साधन है।

– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ

श्राद्ध क्यों करें?

श्राद्ध क्यों करें? (www.shivyogpath.com)

(श्रद्धा + आभार + स्मरण)

  1.  “श्रद्धा” का अर्थ है —

    किसी के प्रति थैंकफुलनेस उनके संस्कारों और योगदान का स्मरण

    उनके प्रति आभार व्यक्त करना

    पितृ पक्ष वह समय है जब हम

    अपने दिवंगत बुजुर्गों को याद करते हैं,

    उनकी आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए तर्पण करते हैं।

    देवयान और पितृयान

     स्वाहा = देवताओं के लिए

    स्वधा = पितरों के लिए

    यह दो मार्ग हैं —

    एक ईश्वर की ओर, दूसरा पूर्वजों की ओर

    श्राद्ध से क्या होता है?

    पूर्वजों की स्मृति से हमारा संस्कार शुद्ध होता है

    कृतज्ञता से मन निर्मल होता है

    तर्पण से पितृ तृप्त और प्रसन्न होते हैं

    संतति में संस्कृति बनी रहती है

    श्राद्ध = श्रद्धा से की गई तर्पण क्रिया

    जो पितरों को भी तृप्त करती है और

    हमारे जीवन को भी पावन बनाती है।

– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ

 भगवान बुद्ध का जीवन दर्शन: शुद्ध मन, करुणा और मध्यम मार्ग की शिक्षा

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Blog – लेखक: डॉ. अनुप नाथ

ब्लॉग श्रेणी: जीवन दर्शन | आत्मिक विकास | बौद्ध धर्म

समय: पढ़ने का समय – 5 मिनट

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प्रस्तावना

क्या आपने कभी सोचा है कि जिस संसार को हम जीवन भर संजोते हैं, वह कितना स्थायी है? भगवान बुद्ध का जीवन और उनके उपदेश हमें यही बताते हैं कि “जो कुछ भी दिखता है, वह शीघ्र नष्ट होने वाला है।” तो फिर इस माया-मोह के जाल में क्यों फंसें? आज हम आपको ले चलते हैं एक ऐसे महान आत्मा की जीवन यात्रा में, जिसने जीवन के गहरे प्रश्नों का उत्तर स्वयं खोजा — वह हैं भगवान बुद्ध। (www.shivyogpath.com)

बुद्ध के जीवन की प्रेरक शुरुआत

ढाई हजार वर्ष पूर्व की बात है। शाक्य वंश के राजकुमार सिद्धार्थ जब पहली बार वृद्धावस्था, रोग और मृत्यु को देखते हैं, तो उनका हृदय द्रवित हो उठता है। अब तक वे केवल विलासिता में रहे थे, पर इस एक घटना ने उन्हें संसार की क्षणिकता का बोध कराया। यहीं से उनके भीतर एक नया प्रश्न जन्म लेता है —

क्या सबका अंत यही है? क्या इससे कोई मुक्ति है? और यहीं से वे सन्यास के मार्ग पर निकल पड़ते हैं, सत्य की खोज में… कठोर तपस्या से “मध्यम मार्ग” तक वर्षों तक कठोर तपस्या की, पर ज्ञान की झलक नहीं मिली। शरीर जर्जर हो गया, मन थक गया। तब उन्होंने समझा — “न अति भोग से मुक्ति है, न अति व्रत से।” यहीं से जन्म हुआ मध्यम मार्ग का —एक ऐसा संतुलित जीवन जहाँ भोग नहीं, संयम है कष्ट नहीं, करुणा है आडंबर नहीं, आत्मिक जागृति है (www.shivyogpath.com)

बुद्ध के मुख्य उपदेश

भगवान बुद्ध ने बहुत ही सरल और व्यावहारिक जीवन-दर्शन सिखाया। उनके उपदेश किसी भी जाति, लिंग, वर्ग या मत के बंधन में नहीं बंधे। उन्होंने कहा: जीवन के चार सत्य: संसार नश्वर है। हर वस्तु में दुख छिपा है। तृष्णा ही दुख का मूल है। मुक्ति का मार्ग है — अष्टांगिक मार्ग। धर्म का सरल मार्ग: शुद्ध मन से कर्म करो शुद्ध हृदय से बोलो शुद्ध चित्त रखो हिंसा, चोरी, झूठ, निंदा, लालच और द्वेष से बचो सेवा भाव रखो और सभी से प्रेम करो आम्रपाली और समानता की शिक्षा भगवान बुद्ध ने वैशाली की प्रसिद्ध नर्तकी आम्रपाली को भी सम्मान दिया, उसे शिष्यत्व प्रदान किया और उसका आम्रवाटिका स्वीकार किया। यह दर्शाता है कि बुद्ध का धर्म जाति, लिंग या व्यवसाय नहीं देखता — केवल मन की निर्मलता देखता है। समाज में क्रांति और समता का सन्देश बुद्ध ने स्त्रियों और शूद्रों को भी समान धार्मिक अधिकार दिए। उन्होंने कहा: “धर्म में कोई ऊंचा-नीचा नहीं, हर प्राणी समान है।” इस विचार ने भारतीय समाज को गहराई से झकझोरा और नई चेतना दी। बुद्ध भिक्षु संघ ने दूर-दूर देशों तक इस संदेश को फैलाया।

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निष्कर्ष: आज के युग में बुद्ध क्यों जरूरी हैं?

आज जब मनुष्य द्वेष, भोग और भटकाव से ग्रसित है, तब बुद्ध का मध्यम मार्ग, करुणा और शुद्ध मन का उपदेश एक नई रोशनी की तरह है। सच्चा धार्मिक वही है — जो प्राणीमात्र के प्रति प्रेम रखे सेवा से पीछे न हटे और अपने मन को संतुलित रखे बुद्ध केवल एक महापुरुष नहीं, मानवता के मार्गदर्शक हैं। उन्होंने जो कहा, वो आज भी उतना ही प्रासंगिक है: “अप्प दीपो भव — अपने दीपक स्वयं बनो।”

आपके विचार?

क्या आप भगवान बुद्ध की किसी शिक्षापर चलते हैं? या आप जीवन में किसी मोड़ पर उनके विचारों से प्रेरित हुए हैं?

– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ

गुरू वंदना

Guru Vandana (www.shivyogpath.com)

गुरु वंदना: “सतगुरु एक, तुम ही आधार”

सतगुरु एक, तुम ही आधार,
तुम बिन जीवन, सूना संसार।
जब तक ना हो संग तुम्हारा,
कैसे मिले शांति का किनारा?

माया में जब छाए अंधकार,
तब तुम देते जीवन का सार।
ना मिले जब तक चरण सहारा,
भटके जीव, ना पाए किनारा।

सतगुरु एक, तुम ही आधार,
तुम बिन सूना हर अवतार।
तुम ही प्रभु, तुम ही उद्धार,
तुमसे ही उजियारा संसार।

हम आए हैं द्वार तुम्हारे,
छोड़े हैं भार चरणों तले।
दीन-दुखी की सुनो पुकार,
सतगुरु एक, तुम ही आधार।

जब संसार में उठे आंधी,
डगमग नैया, बहे ज्यों पानी।
तेरे ही द्वार लगे पुकार,
सतगुरु एक, तुम ही आधार।

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– शिवयोगी  – डॉ. अनूप नाथ ………Dr. Anup Nath